धीरज ,सब्र,धैर्य ,सहनशीलता .....एक सीमारेखा है जीवन में ।
इसे लांघना दुष्कर है ,और इसे नारी क्यों लांघे ?
सीमायें ,हद बांधकर रखते हैं इन्सान को ,,अहसास दिलातें हैं नारी को ,की लक्षमणरेखा लंघोंगी तो रावन बैठें है बाहर ,मुँह बाए ,तुम्हें निगलने के लिए !वैसे भी दहलीज़ क बाहर क्या है बिसात औरत का ?
जब तक वह है किसी की बेटी ,किसी की पत्नी ,,किसी की माँ तब तक शिरोधार्य करता है समाज उसके अस्तित्व को .....
घर क अन्दर ही है सीमाएं उसके सम्मान की .....
बाहर निकलते ही नस्तर चुभती नज़रें ,,ललचाये कटाक्ष भावभंगिमाएँ ,
तब क्या वो किसी की माँ ,बेटी ,,या पत्नी नही होती ?
क्या समाज लक्षमणरेखा नहीं खींच सकता ?क्या उसे सुरक्षित ,सुरभित हवा नही दे सकता ?
बात मर्यादा की करता है समाज ,पुरूष जो ठेकेदार हैं समाज के .......क्या उनकी पशुता अपने पराये का भेद देख्कर
उमड़ता है ..अगर हाँ तो हर पुरूष पशु है
और हर औरत के लिए ही क्यों लक्षमणरेखा है ?
दोहरे मापदंड क्यों है नारीत्व को परखने का ?
नारी को कुलटा बनानेवाला भी तो पुरूष ही तो है, फिर क्यों कुलटा का उद्धार करने में उन्हें शर्म आती है ....
सीमा लांघना रावन ने ही तो सिखाया ,,अपनी विवशता का वास्ता दे कर ....
सीता क्यों पतित हो गई थी ,,,रामराज में क्यों उसे अग्निपरीक्षा देनी पड़ी ....
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2 comments:
SHEELA JEE,
AAPKEE IS RACHNA NE MUJHE THODA SAHAS AUR DIYA HAI. MAIN SWAYAM YEHEE SAWAL UTHA RAHA HOON 'RAM KEE VYAKTI PAREEKSCHA' ME .'RAM NAVAMEE' PAR PAHLEE KISHT PRAKASHIT KEE HAI . PADHENGEE TO SHAYAD SAHMAT BHEE PAYENGEE.
AAPKA SWAGAT HAI .
aapka bahut bahut shukriya rajnish ji....
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