कौन आया है मेरे कब्र पर ...की मौत ने मेरे मुझे मजार बना दिया
जीते जी तो समझ न सके मुझे
की मौत को भी मेरे उधार बना दिया
झंझावातों को झेलती चली गई
क़दमों की लकीर मिटती चली गई
शान्ति से मर भी नही सकती
की मौत को भी मेरे त्यौहार बना दिया
भावनाओं को मार कर तरक्की की बात करते है वो
की मेरी आंसूं भरी आंखों को भी ,,सुखा सुना निर्जीव संसार बना दिया
कुरेदते रहे मेरे मन के महीन जख्मों को
की सुलग रही थी मैं अंगार बना दिया
आंखों से बरसती थी प्यार की बूंदें
पल्लवित होता था स्नेह के तले
कोटी कोटी भावनाएं इस संसार के लिए
की जला जला के उन्होनें मुझे थार बना दिया .....
जला जला के मुझे उन्होनें 'थार ' बना दिया
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