Tuesday, February 15, 2011

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इमली के पेड़ तले
वो बिछे खाट और वो पुरवाई
वो खट्टे मीठे लम्हे और वो लड़ाई
वो मिट्टी के खिलौने
वो गुड्डे और गुड़ियों की सगाई,
वो बैठ भैस के पीठ पे
पार करना तालाब इस पार से उस पार ,
और वो कीचड़ में फिसलाई
और डांट का डर माँ का
वो फटे कपड़े और वो रोज़ की सिलाई
कहाँ गए वो दिन ,वो ऊर्जा अपने दिनों से
काश मिल पाए तो जी ले वही बचपन ,वो बड़ाई ..