Tuesday, February 15, 2011

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इमली के पेड़ तले
वो बिछे खाट और वो पुरवाई
वो खट्टे मीठे लम्हे और वो लड़ाई
वो मिट्टी के खिलौने
वो गुड्डे और गुड़ियों की सगाई,
वो बैठ भैस के पीठ पे
पार करना तालाब इस पार से उस पार ,
और वो कीचड़ में फिसलाई
और डांट का डर माँ का
वो फटे कपड़े और वो रोज़ की सिलाई
कहाँ गए वो दिन ,वो ऊर्जा अपने दिनों से
काश मिल पाए तो जी ले वही बचपन ,वो बड़ाई ..

Tuesday, January 25, 2011

दूर दूर तक हरे हरे घास,खड़े हुए थे ,लहलहाते हुए वो हवाओं के संस्पर्श से ..

पानी की कल- कल बहती आवाज़

पक्षियों के कलरव ,उनके आनाज के दानों की चाह और कोशिश उन्हें पाने की

चलते चलते दूर, एक गाँव से, दुसरे गाँव

और गांववालों की जद्दोजहद अपनी रोज़मर्रा क़ि जरूरतों के लिए

धुप पाने की चाह से ,अधूरे ढके बदन के साथ वो बच्चे

उनके आँखों में वो सपने ,कभी तो इस उन्नत जहाँ में

वो भी कभी खड़े होंगे ,पुरे गर्व और सम्मान के साथ ..

मुझे इतनी हिम्मत और बरकत देना मेरे खुदा

क़ि मै किसी के छोटे -छोटे सपने पुरे कर सकूँ ..

उन्हें सिर्फ विश्वास दे सकूँ ,क़ि जिंदगी सिर्फ पैदा होने और मर जाने का नाम नहीं है

ये तो औरों की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी को लेकर आगे बढ़ने का नाम है ..


आज रोड़े बनी हैं ,खुद की कमजोरी ,

नहीं तो असंभव नहीं है राहें तुम्हारी,

चाहें हम तो एक पल में जीत ले ये दुनिया सारी

ये पीड़ा ये विवशता ये सारी

ये अपने दिमाग में ही हैं ,नहीं है इनका अस्तित्व है भारी

तो क्यों न अन्दर से नष्ट करें ये बीमारी

न रहे नीला मन् कभी ,रहे बस तो हरियाली ...


अगर कमीं महसूस करते किसी अपने का ..

तो क्यों होते आँख नम हैं ?

अगर हम खो देते किसी अपने को ..

तो होते क्यों गुम हम हैं ?

क्यों वक़्त लगता है फिर से जीने में ?

क्यों रह रह कर पीड़ा से व्यथीत होते मन् हैं?

मै वो वही हूँ ,उनका ही हिस्सा ,उनकी ही आत्मा ,उनकी ही संतान ..

वो अगर सजीव नहीं तो क्या ?

वो आसपास बसते हैं मेरे ,और न वो हमसे अनजान हैं..

वो बसते हैं मेरे कर्मो में ,मेरे विचार में ..

वो मार्गदर्शन करते हैं ,बन के हमेशा~ आत्मज्ञान~ हैं


खलिहानों में फसल के रखवारी में जागते थे वो रात भर ..
साथ होता था उनके दिन भर की थकान पर ..
खाने को मिलता था रोटी और प्याज के कुछ टुकड़े ..
पर पेट तब भी भरता था और होती थी उनकी आत्मा तर ..
सोने को मिलती थी पुरानी चादर पैरे के साथ ..
पर सोते थे चैन की नींद वो कुछ प्रहर ..
ऐसा संतोष ऐसी तृप्ति और ऐसा हौसला उन्हें भी दो रब ..
जिनके पास सब कुछ के तौर पर सिर्फ , सपने हैं

छोटे छोटे हाथों का वो स्पर्श

वो हर पल लग जाना गले से ,

वो फुदकती हुई ,इठलाती हुई

चलने की अदा

वो उज्वल आँखें ,ऊर्जा से भरी सदा ,

वो मखमली गालों पे छोटी सी हँसी

पाने के लिए सिर्फ एक मीठी गोली ,

वो नींद में पुकारना माँ -माँ

वो लहराता ,हसता बचपन

वो बढ़ते सपनों की छुअन

वो ललक बड़े होने की बड़ी ,

मेरे गोद में संवरता यूँ जैसे पवन

वो मेरे और उसके दिल का स्पंदन ,

ये मेरे लाडले-लाडली की है उपवन

बड़े अनमोल हैं ये जल और जलज का सम्बन्ध ..


बाहें बनी हरी हरी धरती
लिपटे हुए कुछ रास्ते उनसे
दूर ले जा रही ,उन्हें न जाने कैसे
जाने को दूर जाना न चाहे मन्
पर चाहत से कहाँ भरता है चमन
खिले पड़े रह कर मुरझा से जाते हैं वो उपवन
जिन्हें न मिलता भावनाओं का सींचन ..
आओ मिल कर एक पेट की भूख मिटाए
एक -एक कर के ये बचपन खिलाएं
खिलेंगे ये तो ,फलेंगे फूलेंगे हम भी
नहीं तो और क्या रखा है ,न अब और न अगले जनम .