Monday, June 9, 2008

मेरी शिक्षक

प्रतिदिन नवसृजन करती है ....
प्रतिदिन नवराह रौशन करती है ...पुरी जिंदगी उनकी एक तपस्या है ....
एक तपस्या जिसमें वह सिर्फ़ साध्य बनती है ....
तपस्या पर पर उनके अपनों के लिए .....
सारी दुनिया उनकी अपनी है ...
वह जननी है जहान् की
संबल सुदुढ़ व्यक्तित्व उनका प्रेरित करता अनेक को
मूक की भाषा जाने वो
अंतर्मन को पहचाने उसकी
दीपक जलता है जैसे निःस्वार्थ
शिक्षक समर्पित है संसार को उसी तरह
गर्भ से अंत तक सिर्फ़ सृजन उनका धर्मं है
उनके आँचल की छाया में पल्लवित होता है ज्ञान
उनका शय निष्पक्ष होता है
वह समदर्शी है वह महान है ..........क्योंकि वह सृजनकर्ता है जौहरी है ......

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