सदन के किसी कोनें में जलता छोटा सा दीपक ....
कोटी-कोटी प्रेरणा से पूर्ण ,,विकिरित कर रहा स्वर्ण रश्मियाँ ...
इस जहान के लिए प्रीती उसकी छलक रही ...
राह रौशन करती अनेक लोगों की ,,अपरिचित किंतुंअपनों की ....
सिर्फ़ जलता जा रहा है पुरी लगन और समर्पण के साथ ...
न जलने की परवाह है न बुझने की ....
उसे थोड़ा गर्व हुआ स्वयं पर ....
स्वयं ही विकिरित किरणों ने जगाया उसे ...
तब भान हुआ उसे ...
वह अकेले नही है तेल और बाती भी हैं
जो उसके साथ जल रहें हैं ....
वस्तुतः इंसान भी है ......दीप सा स्वयंम प्रकाशित स्वयंम समाहित .....
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