वो पल तो मेरे हैं ....
घर से दूर ,घर के बहुत करीब ,
एक उद्देश्य लेकर .......
नन्हें पावों ने गाँव छोड़ा था ...
नन्हें हाथों में school बैग का बोझा ढोते -ढोते ...
अनजाने में सफलता के सोपान तय करती गई ॥
शिखर पर पहुचते तक अहसास ही न था ....मेरे पाँव शिखर पर हैं ...
उस शिखर पर जहाँ से क्षितिज बहुत समीप है ...
जहाँ सपने और वास्तविकता आलिंगन करते हैं ...
अब आगे क्या होगा क्या नहीं ,,जाने मेरी जिंदगी
हक़ उसे ही दे बैठी हूँ
चाहे जहाँ ले जाए मुझे ...
अब डर नही है सफलता -असफलता का .....जन्म मरण का क्योंकि .........अब भी तो वो पल मेरे हैं .....
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