चाँद की जिद कर बैठी थी बचपन में ......
हवाओं में हाथ फिरा कर पापा ने कहा ---लो बेटी ये है चाँद
मैंने भी पुलकित होते हुए नन्हें -नन्हें हाथों में उसे पकड़ा ॥
कितनी संतुष्टि थी खुशी थी उस बचकानेपन में
आज भी वैसे ही वास्तविकता से दूर ,,कल्पनाओं में मुश्कुराना चाहती हूँ ......
चाँद को पाना चाहती हूँ उसी सहज तरीके से ......
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