Tuesday, January 25, 2011

बाहें बनी हरी हरी धरती
लिपटे हुए कुछ रास्ते उनसे
दूर ले जा रही ,उन्हें न जाने कैसे
जाने को दूर जाना न चाहे मन्
पर चाहत से कहाँ भरता है चमन
खिले पड़े रह कर मुरझा से जाते हैं वो उपवन
जिन्हें न मिलता भावनाओं का सींचन ..
आओ मिल कर एक पेट की भूख मिटाए
एक -एक कर के ये बचपन खिलाएं
खिलेंगे ये तो ,फलेंगे फूलेंगे हम भी
नहीं तो और क्या रखा है ,न अब और न अगले जनम .

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