Monday, March 30, 2009

सिसकी

दूर कहीं कोने में बैठा कोई सिसकियाँ ले रहा था ....
मेरे जमीर ने मुझसे कहा -जाओ शायद तुम्हारा उनसे परिचय हो ,
और तुम किसी को सिसकियों से मुक्त करा सको ....
मै करीब गई तो बेबस ,हारे हुए इंसान के साथ `सिसकी `थी .....
वो चाह कर भी इंसान को छोड़ नही पा रही थी ....
क्यों ???
इंसान का मनोबल ही जब टूट चुका हो ....
इंसान स्वयम जब खुद से हारना चाहे ....
इंसान जब अपने ही भावनाओं के अधीन हो ,
तो गम ,, यहाँ तक हार भी उसे छोड़ना नही चाहती ....

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